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गणेश चतुर्थी का इतिहास और महत्व

गणेश चतुर्थी भगवान श्रीगणेश के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह महत्वपूर्ण पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को आता है।

शास्त्रों के अनुसार माता पार्वती के भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को अपने शरीर की उबटन से गणेश जी का निर्माण किया था। गणेश जी को विध्नहर्ता माना जाता है। प्रत्येक शुभ कार्य में सबसे पहले गणपति की पूजा की जाती है। यह उत्सव प्राचीन काल से ही हिन्दू घरों में मनाया जाता रहा है।

वर्तमान समय में इसका स्वरूप काफी बदला है। अब देश के विभिन्न हिस्सों में यह पर्व सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है जिसकी शुरूआत महाराष्ट्र से हुई थी।

सन् 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के विरोध में इसे सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाने की शुरूआत की। जिसके पीछे उनका उद्देश्य था कि इस बहाने समाज एकत्रित हो। जाति-पाति के भेदभाव समाप्त हों और स्वतंत्रता संग्राम के लिए आम जनमानस जाग्रत होकर तैयारी करे। उन्हांेने कहा था- धर्म के माध्यम से समाज को जोड़ो, और समाज को जोड़कर देश को आजाद करो।

तिलक जी द्वारा जलाया दीप आज भी जल रहा है। गणेश चतुर्थी पर सार्वजनिक पंडाल, सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन-कीर्तन और सामाजिक सेवाएं इस पर्व को एक सामाजिक क्रांति की तरह जीवंत बनाए हुए हैं।

आईये इस गणेश चतुर्थी पर हम भी विध्यनहर्ता गणपति से यही प्रार्थना करें कि हमारे जीवन में सभी विध्न और संकट दूर हों और हम समाज तथा राष्ट्र की सेवा में समर्पित रहें।

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